हिंदी फिल्मों का सुनहरा सफर आज सौवें साल में प्रवेश कर रहा है। अगर इस एक सदी में आधी सदी पंजाब के नाम लिख दें तो कुछ गलत न होगा। क्या अभिनय और क्या गीत-संगीत, या फिर निर्माण-निर्देशन, पंजाब ने हिंदी सिनेमा की इन सभी विधाओं में जितनी नामचीन हस्तियां दी हैं, उतनी शायद ही किसी और प्रांत ने। कितने ही प्रख्यात पंजाबी फिल्म निर्माता, निर्देशक, गीतकार, संगीतकार, अभिनेता आदि पंजाब से निकल कर हिंदी सिनेमा के आकाश पर चमके। प्रख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक यश जौहर का जन्म अमृतसर में हुआ था। अपनी दर्द भरी आवाज से 50-60 के दशक में फिल्मों को हिट कराने वाले मुकेश लुधियाना में पैदा हुए थे जबकि अपनी मखमली आवाज में हजारों सदाबहार गीतों के जरिए आज भी संगीत प्रेमियों में जिंदा मुहम्मद रफी साहिब अमृतसर में। अभिनेताओं की बात करें तो धर्म देव पिशौरीमल आनंद गुरदासपुर में जन्मे जिन्होंने देव आनंद के नाम से गाइड, ज्वेल थीफ, हम दोनों, गैंबलर व तीन देवियां सरीखी फिल्मों से अपना जादू बरकरार रखा। अनेक कामयाब फिल्मों के जरिए करीब आधी सदी से फिल्म जगत पर जगमगा रहे धर्मेद्र लुधियाना में जन्मे थे, जबकि राजेश खन्ना अमृतसर में। हिंदी फिल्मों का सफर 1913 से शुरू हुआ जब भारत-पाक का विभाजन नहीं हुआ था और पंजाब का भी बंटवारा नहीं हुआ था। उस समय के पंजाब की चर्चा करें तो संगीतकार रोशन गुजरांवाला, साहिर लुधियानवी के नाम से मशहूर गीतकार-शायर अब्दुल हई लुधियाना, ओपी नैय्यर लाहौर, नक्श लायलपुरी फैसलाबाद, सुरैया गुजरांवाला, यश चोपड़ा लाहौर, जुबली कुमार के नाम से विख्यात रहे राजेंद्र कुमार स्यालकोट और गुलजार के नाम से लिखने वाले लेखक, निर्माता-निर्देशक संपूर्ण सिंह कालरा जेहलम जिले में पैदा हुए थे। इस सबके बीच यदि कपूर परिवार की चर्चा न हो तो फिल्मों का स्वर्णिम अध्याय अधूरा है। पृथ्वी राज कपूर संयुक्त पंजाब के लायलपुर में पैदा हुए थे। और उसके बाद उनके परिवार से चौथी पीढ़ी अब परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रही है। यह वे नाम हैं जिन्होंने बरसों हिंदी सिनेमा पर अपने-अपने काम के जरिए राज किया। पंजाब का योगदान केवल इन जगमगाते सितारों तक ही नहीं है बल्कि हिंदी फिल्मों में मुंडा, कुड़ी, मक्खणा, गड्डी व मौजां आदि शब्दों की भरमार रही है जो विशुद्ध पंजाबी शब्द हैं। इतना ही नहीं अनेक पंजाबी गीतों ने हिंदी फिल्मों को यादगार व हिट बनाया है। ले दे सैंया ओढ़नी मौजां ही मौजां, नगाड़ा-नगाड़ा, मां दा लाडला बिगड़ गया, नी मैं समझ गई खाली दिल नइयों जान वी ए मंगदा, मस्त कलंदर लंबी जुदाई, जी करदा.तैनूं जफ्फियां पावां जी करदा ऐवें दुनिया देवे दुहाई और नी मैं यार मनाणा नी आदि सैकड़ों ऐसे गीत हैं जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी अहमियत बनाई।
Tuesday, July 10, 2012
बिना पंजाब, क्या सिनेमा जनाब!
हिंदी फिल्मों का सुनहरा सफर आज सौवें साल में प्रवेश कर रहा है। अगर इस एक सदी में आधी सदी पंजाब के नाम लिख दें तो कुछ गलत न होगा। क्या अभिनय और क्या गीत-संगीत, या फिर निर्माण-निर्देशन, पंजाब ने हिंदी सिनेमा की इन सभी विधाओं में जितनी नामचीन हस्तियां दी हैं, उतनी शायद ही किसी और प्रांत ने। कितने ही प्रख्यात पंजाबी फिल्म निर्माता, निर्देशक, गीतकार, संगीतकार, अभिनेता आदि पंजाब से निकल कर हिंदी सिनेमा के आकाश पर चमके। प्रख्यात फिल्म निर्माता-निर्देशक यश जौहर का जन्म अमृतसर में हुआ था। अपनी दर्द भरी आवाज से 50-60 के दशक में फिल्मों को हिट कराने वाले मुकेश लुधियाना में पैदा हुए थे जबकि अपनी मखमली आवाज में हजारों सदाबहार गीतों के जरिए आज भी संगीत प्रेमियों में जिंदा मुहम्मद रफी साहिब अमृतसर में। अभिनेताओं की बात करें तो धर्म देव पिशौरीमल आनंद गुरदासपुर में जन्मे जिन्होंने देव आनंद के नाम से गाइड, ज्वेल थीफ, हम दोनों, गैंबलर व तीन देवियां सरीखी फिल्मों से अपना जादू बरकरार रखा। अनेक कामयाब फिल्मों के जरिए करीब आधी सदी से फिल्म जगत पर जगमगा रहे धर्मेद्र लुधियाना में जन्मे थे, जबकि राजेश खन्ना अमृतसर में। हिंदी फिल्मों का सफर 1913 से शुरू हुआ जब भारत-पाक का विभाजन नहीं हुआ था और पंजाब का भी बंटवारा नहीं हुआ था। उस समय के पंजाब की चर्चा करें तो संगीतकार रोशन गुजरांवाला, साहिर लुधियानवी के नाम से मशहूर गीतकार-शायर अब्दुल हई लुधियाना, ओपी नैय्यर लाहौर, नक्श लायलपुरी फैसलाबाद, सुरैया गुजरांवाला, यश चोपड़ा लाहौर, जुबली कुमार के नाम से विख्यात रहे राजेंद्र कुमार स्यालकोट और गुलजार के नाम से लिखने वाले लेखक, निर्माता-निर्देशक संपूर्ण सिंह कालरा जेहलम जिले में पैदा हुए थे। इस सबके बीच यदि कपूर परिवार की चर्चा न हो तो फिल्मों का स्वर्णिम अध्याय अधूरा है। पृथ्वी राज कपूर संयुक्त पंजाब के लायलपुर में पैदा हुए थे। और उसके बाद उनके परिवार से चौथी पीढ़ी अब परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रही है। यह वे नाम हैं जिन्होंने बरसों हिंदी सिनेमा पर अपने-अपने काम के जरिए राज किया। पंजाब का योगदान केवल इन जगमगाते सितारों तक ही नहीं है बल्कि हिंदी फिल्मों में मुंडा, कुड़ी, मक्खणा, गड्डी व मौजां आदि शब्दों की भरमार रही है जो विशुद्ध पंजाबी शब्द हैं। इतना ही नहीं अनेक पंजाबी गीतों ने हिंदी फिल्मों को यादगार व हिट बनाया है। ले दे सैंया ओढ़नी मौजां ही मौजां, नगाड़ा-नगाड़ा, मां दा लाडला बिगड़ गया, नी मैं समझ गई खाली दिल नइयों जान वी ए मंगदा, मस्त कलंदर लंबी जुदाई, जी करदा.तैनूं जफ्फियां पावां जी करदा ऐवें दुनिया देवे दुहाई और नी मैं यार मनाणा नी आदि सैकड़ों ऐसे गीत हैं जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी अहमियत बनाई।
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